Monday, December 13, 2010

घर की छत टूट गई

बस की ये दीवाली आई , सोचा मैंने की करवाऊ सफाई
पर जैसे ही शुरू की पुताई , देखा कि घर की छत टूट गई

मन होता है रसोईघर में संगमरमर लगवाऊ , दीवारें नए रंगों से सजाऊ
चुनने लगा मैं रंग , तो कीमतें आसमान छू गई
देखा की घर की छत टूट गई

मंदिर में बैठा लेने राम नाम , सोचा मिलेगी कुछ शांति
पर जेसे ही बिछाया आसन , मैने पाया की फर्श भी तड़क गई
देखा की घर की छत टूट गई

आज मन कर रहा हे लिखू कुछ , ली मैने हाथ में कॉपी
उठाई कलम , पर ये क्या स्याही तो खतम हो गई
देखा की घर की छत टूट गई

परेशानियां तो बनी रहती हे , पर बस अब गिनाउंगा नहीं ,
कोशिश करूंगा मुस्कुराने की , दर्द बांटकर बढ़ाऊंगा नहीं
तो क्या हुआ जो घर की छत टूट गई

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