Monday, June 15, 2020

घर

एक बड़ी सी जगह
उसमे छोटा सा घर
खुली सी छत
धूप  से उजला आँगन  |

एक छोटा कच्चा कमरा
पेड़ की झुरमुठ में घिरा
जिसकी दीवारों को हाथ से लीपू  ,
तुम्हारे संग सजाऊँ, कुछ चित्र उकेरूँ |

और उस कच्चे कमरे में होगा कुम्हार का चाक,
कोने में एक सुराही |
कुछ खुले से रंग
कुछ बिखरी किताबे |

उसकी खिड़की के पास होगी एक छोटी सी टेबल
उसपे रखे कुछ खाली पन्ने ,
जिनपर यथार्थ और कल्पनाओ  से टकराते हुए
कुछ शब्द सिमट जाएंगे, और कुछ टेबल पर बिखर जांएगे |

आँगन में रंगोली डाल ,
सबसे ऊँचे पेड़ पे बांधूंगी झूला |

कभी चिड़िया  बनाते बनाते जब वो हाथी में ढल जाएगी
तब बाहर लगे नल से मिट्टी में सने  हाथ धो लूंगी |

फिर शाम को सुकून से तुम्हारे संग बैठ
चाय की प्याली में गपशप उढ़ेलूँगी  |

-अंकिता
१५ जून , २०२०