Monday, July 25, 2011

कब्रें



कल रात दो कब्रें आपस में बतिया रही थी !

जब इन इंसानों के अपने हो जाते हैं बेजान 
यहाँ लाकर छोड़ जाते है 
क्यों डरते है उनसे जिन्हें खुद ही दफ़न कर जाते है 
अपनी यादों पर मिट्टी का कफ़न उड़ाकर 
दोबारा उनसे नज़र मिलाने में  कतराते हैं 
तुम्हारे और मेरे ऊपर लगे पौधो  में जो फूल खिले हैं  
उनकी मासूम मुस्कराहट सबूत है इस बात का 
की जिन्दगी इस कब्रिस्तान में भी बसती है 
फिर  राहगीर क्यों मुड़  जाता?
जाने इस रास्ते से गुजरने में क्यों घबराता है ?

कल रात दो कब्रें आपस में बतिया रही थी !


-अंकिता
२४ जुलाई २०११ 

Sunday, July 17, 2011

भंवर



हर बात में तेरा ज़िक्र है 
कुछ ज़िक्र में तू बिन नाम सही
कुछ ज़िक्र बिना अल्फाज़ सही 
यादों के तूफ़ान में 
हर भंवर लिए है शक्ल तेरी 
इन बहती खुनक हवाओं में 
लाशक्ल तेरा एहसास सही 
तेरे जेहन में खुश हूँ मैं 
बनकर गुम  ज़ज्बात कहीं 
दगा ज़िन्दगी ही दिया करती है 
मौत न थी बेईमान कभी !!
    - अंकिता 
      १७ जुलाई , २०११

English Transliteration:
Har baat me tera zikra sahi
Kuchh zikra me tu bin naam sahi
Kuchh zikra me bina alfaz sahi
Yaado ke toofan me
Har bhanvar liye hai shakla teri
In behati khunak hawao me
Lashkla tera ehsas sahi
Tere zehan me khush hun main
Bankar ghum zazbat kahin
Daga zindagi hi diya karti hai
Maut na thi beiman kabhi
-Ankita
17th July 2011

Wednesday, July 13, 2011

रफ़्तार पर अल्पविराम


लम्बी कतार 
मैं ट्रेन में सवार
मुझे थी बड़ी जल्दी
याद आ रहा है माँ के हाथों का खाना 
उसमे पड़ा , स्वाद बढाता 
राई जीरा और हल्दी  
ट्रेन की बड़ी 
तेज़ थी रफ़्तार 
उस से कहीं ज्यादा गतिशील थे 
मेरे मन के विचार 
तभी एक पल में 
ट्रेन और मेरे ख़याल
दोनों की रफ़्तार पर 
लग गया विराम 
हुई एक और रेल दुर्घटना 
कई थे घायल , कुछ मृत 
कुछ ज़िंदा 
चारों ओर से सुनाई देती 
सवारों की चीख पुकार 
हर आवाज़ में थी 
मदद की गुहार 
केंद्र में खाली पड़ा है 
रेलमंत्री का पदभार 
कोई नहीं है हादसे की 
ज़िम्मेदारी लेने को तैयार 
मुझे भी है 
मदद की दरकार 
क्योंकि अपनी ज़िन्दगी के बदले 
नहीं चाहिए , झूटी सान्त्वना
या  मुआवजा 
मैं  तो बस चाहती हूँ 
अपने घर पहुंचना !!

-अंकिता 
१२ जुलाई २०११