Wednesday, January 30, 2019

माँ तुम हमेशा, सब संभाल लेती हो

दादाजी का लकवा
और उनका वो डंडा लेकर कभी कभी चलना
डंडा खो जाने पर तुम्हारा दौड़कर जाना
और ना मिलने पर खुद ही हाथ पकड़ कर ले जाना
तुम कैसे उनकी बेटी बन जाती हो

माँ तुम हमेशा
सब संभाल लेती हो

दादी की डायबिटीज
खाने का परहेज़ और उनकी ज़िद्द
दादाजी का दादी को हर वक़्त चिढ़ाना
उनकी नोक झोक और कभी न सुलझाने वाले झगड़ो में तुम्हारा उलझ जाना
तुम कैसे चौबीसो घंटे दौड़ लगा लेती हो

माँ तुम हमेशा
सब संभाल लेती हो

प्लास्टिक की कुर्सी के लिए कवर सिलना
लोहे के पलंग से सोफा बनाना
पुरानी साड़ी से गेहू का ड्रम
और मेरे इनाम में मिले गुलदस्ते से टेबल सजाना
तुम बिना डिग्री के सबसे अव्वल आंतरिक सज्जाकार बन जाती हो

माँ तुम हमेशा
सब संभाल लेती हो

उल्टी दस्त में अमृत धारा
पित्त बढे तो नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाना
सर्दी में अजवाइन और गुड़ के लड्डू
खांसी हो तो मुँह के कोने में लौंग दबाना
तुम कैसे किसी के बीमार पड़ने पर वैद्य बन जाती हो 

माँ तुम हमेशा
सब संभाल लेती हो

मुझसे बर्तन मँजवाना
और दादा से धुलवाना
दादा का सब्जी छीलना और मेरा रोटी बनाना
वो भी जब तुम बाहर जाती हो या बहुत थक जाती हो

माँ तुम हमेशा
सब संभाल लेती हो

वो बुआ के लिए साड़ी लेकर पहले दादा दादी को दिखाना
किसी के लिए तोहफा लेते वक़्त हमारी राय  जानना
हमारी गलती पर हमें डांटना
और हमसे गलती से कुछ टूट जाए तो बस मुस्कुरा देती हो (और हमसे साफ करवाती हो :) )
बहुत खूबसूरती से लोकतंत्र का पाठ पढ़ाती हो

माँ तुम हमेशा
सब संभाल लेती हो

सब संवार देती हो

-तुम्हारी बेटी की कलम से
३० जनवरी, २०१९