Sunday, April 4, 2021

प्रेम की मौत

जिस धागे ने 

मुझे तुम्हे बाँधा था 


उसे खोजने मैं और तुम

नई  राह ढूंढते 

फर्श टटोलते 

मिट्टी  पर पैर पटक 

उड़ते धूल के गुबार में कहीं 

अमूर्त को कुछ क्षण के लिए  

मूर्त समझ 

कुछ पल ठहरते 

कि  शायद , कही पड़ा 

किसी कोने में लटका 

मिट्टी में धंसा 

फर्श में फँसा   

सड़ा, गला, छुपा 

किसी अवस्था में पा जाएं  


जिस धागे ने 

मुझे तुम्हे बाँधा था 


कल रात स्वप्न में 

उसके प्रेत की जीर्ण क्षीण काया को 

थका मांदा 

मैले कुचले, पैर समेटे 

कोने में दुबके 

सोते पाया 


-अंकिता 

अप्रैल ४ , २०२१