Tuesday, October 25, 2011

घड़ी



पाठशाला के पहले दिन 
पहली कक्षा में कहा था गुरूजी ने 
" समय की रफ़्तार को पकड़ना 
समय के संग चलना हो तो घड़ी को साथ रखना "
उस दिन से आज तक मैं कभी तन्हा ना रही 
कोई संग हो या ना हो, ऐ घड़ी! तुम हमेशा साथ रही 
मैं हमेशा सोचती थी 
तुम्हारे चलने से होता है सूर्य अस्त , सूर्य उदित 
तुमसे कदमताल मिलाता 
चाँद घटता , कभी  खुद को बढ़ाता
तुम गुडाकेश हो 
दीवारों का अलंकरण हो 
दिन की सखी रात की संगिनी हो 
फिर एक दिन यूँ ही लटके हुए 
तुम चल बसी 
और फिर !
फिर कुछ नहीं 
वही सूर्यास्त वही सूर्य उदित 
वही चाँद वही हर ऋतु में बदलता तापमान 
और तो और 
मेरी दिनचर्या भी वही की वही 
जो नहीं है वो , मष्तिष्क पर छाई
तुम्हारी टिक टिक  की परछाई !

गुडाकेश = नींद को जितने वाला 

अंकिता
२५ अक्टूबर २०११

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