Friday, October 14, 2011

खोये हुए पन्ने



ज़िन्दगी की किताब से  कुछ पन्ने खो गए 
एहसास बनकर अल्फ़ाज़ रह गए 

कुछ रंग आँखों से निकले आबे खां में 
धुल गए , कुछ गहरे हो गए 

वक़्त की स्याही से लिखे कुछ लम्हे 
निखर गए , कुछ फीके पड़ गए 

भीड़ के संग कदम मिलाने की धुन में 
रिश्तों के धनक से कुछ रंग खो गए 

कुछ दोस्त जो किताब पर ज़िन्दगी से सजे थे 
देखते ही देखते सिर्फ नाम रह गए 

शब्दों में जो जज़्बात  संजोये थे 
वक़्त के पर लगाकर उड़ गए 

धनक = इन्द्रधनुष 
आबे खां = बहता पानी 

 -अंकिता पाठक
१४ अक्टूबर २०११

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