Wednesday, August 10, 2011

miscellaneous

अभी चंद मिनट पहले , हमने साथ में चाय पी थी 
कप से उठते धुंए की तरह  , तुम जाने कहा गुम हो गए 
बाहर कहीं से बम धमाके की आवाज़ आई है !!

कूड़े कचरे की चुभन से , नदी के ज़ख्म गहरे हो गए 
अपनी दशा पर रोते रोते ,  समुंदर में मिलकर कुछ शांत हुई 
अब समझ आया की समुन्दर का पानी , इतना खारा क्यों है !!

 तेरे क़दमों के निशाँ को मैं ,तुझसे मिलने का रास्ता समझ चलती रही 
पर सारे निशाँ वृत्त की परिधि पर थे 
मेरा दायरा सीमित करके , तुम जाने कहा बस गए !!

                                                  - अंकिता 
                                                     १६ जुलाई , २०११

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