Wednesday, August 10, 2011

दोस्ती



नदी का किनारा
और  एक  बीज  आवारा सा
सुस्ता रहा था पत्थरों पर बैठकर
कुछ उदास था शायद अपने अकलेपन के साथ 
तभी वो मिट्टी कि गोद में पहुंचा 
लहर के साथ 

बहकर
हवा पानी और धूप ने मिलकर 
थाम लिया था उसका हाथ
और आज इस पेड़ को देखकर लगता है 
दोस्ती कि शुरुआत ऐसे ही हुई होगी 
फिर हुई होगी जिन्दगी कि शुरुआत
साँसों में बाकी रहेगी जिन्दगी 
ज़िन्दा है जब तक दोस्ती !!

-अंकिता पाठक
७ अगस्त २०११ 

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