Wednesday, July 13, 2011

रफ़्तार पर अल्पविराम


लम्बी कतार 
मैं ट्रेन में सवार
मुझे थी बड़ी जल्दी
याद आ रहा है माँ के हाथों का खाना 
उसमे पड़ा , स्वाद बढाता 
राई जीरा और हल्दी  
ट्रेन की बड़ी 
तेज़ थी रफ़्तार 
उस से कहीं ज्यादा गतिशील थे 
मेरे मन के विचार 
तभी एक पल में 
ट्रेन और मेरे ख़याल
दोनों की रफ़्तार पर 
लग गया विराम 
हुई एक और रेल दुर्घटना 
कई थे घायल , कुछ मृत 
कुछ ज़िंदा 
चारों ओर से सुनाई देती 
सवारों की चीख पुकार 
हर आवाज़ में थी 
मदद की गुहार 
केंद्र में खाली पड़ा है 
रेलमंत्री का पदभार 
कोई नहीं है हादसे की 
ज़िम्मेदारी लेने को तैयार 
मुझे भी है 
मदद की दरकार 
क्योंकि अपनी ज़िन्दगी के बदले 
नहीं चाहिए , झूटी सान्त्वना
या  मुआवजा 
मैं  तो बस चाहती हूँ 
अपने घर पहुंचना !!

-अंकिता 
१२ जुलाई २०११

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