Sunday, March 8, 2015

आवाज़ कहा गयी ?

मन करता है बोलूँ , चिल्लाऊं,
आवाज़  बाहर आना चाहती है मेरी;
पर कहाँ जाऊं?

कमरे मे ?
पर जोर से बोलूँ तो बंद दरवाज़ों के पीछे रहने वालो को तकलीफ  होगी ,
छत पर जाऊं?
इन ऊँची इमारतो क़े बीच अब छत भी कहाँ है मेरी ,
और सड़क ?
वहां तो हॉर्न का शोर है , वो हर बार दबा देता है मेरी आवाज़ को 
फेसबुक ,ट्विटर पर कुछ लिख आऊं ?
पर मुझे लिखना नहीं कुछ बोलना है 
दोस्त ?
उन्हें वक़्त कहाँ है,
क्या जाऊं दरिया किनारे?
लेकिन एक दरिया का पानी सूख गया, दूसरे के ऊपर एक बड़ा सा ऑफिस बन गया है | 

आज मैंने ड्रामा क्लास ज्वाइन कर ली है
वो बेसमेंट मे है 
वहां कोई नहीं रोकेगा मुझे बोलने से । 

-अंकिता 
मार्च ८, २०१५ 

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