Saturday, August 31, 2013

दुविधा

खुश तो हूँ मैं , उद्घाटन है आज 
बन जो गया है, नाना नानी का मकान 
मन में है दुविधा है, हज़ारों हैं काम 
अपनी धुन में मगन, बतिया रहे हैं मेहमान ।

सोचती हूँ 
खाने के लिए, डिस्पोजेबल मटेरियल लाऊं ?
या टेंट हाउस से थाली कटोरी, चम्मच, मंगवाऊ ? 
दुविधा है 
क्योकि घर के पीछे है प्लास्टिक की थैलियों की रो 
और नल में पानी का कम है फ्लो । 

नानाजी रोज़ पेपर पर लिखते हैं राम नाम 
इसे मंदिर में जमा कराने का सौपा  है मुझे काम 
दुविधा है 
इसे मंदिर में सहेज कर रख आऊं ?
या बांध कर कथा का प्रसाद, इसे सब में बँटवाऊ ?

घर में हैं चूहे, जो करते हैं परेशान 
नानी ने की है , रैट किल की डिमांड 
दुविधा है 
क्योंकि मैं लाई, और मुझसे ही रखवाया ?
पूछा ऐसा क्यों , तो जीव हत्या को पाप बताया 
ठीक है थोड़ी दुविधा के साथ 
मैंने भी ये पाप अपने सर चढ़ाया 
रैट  किल मंदिर के नीचे रख 
भगवान  के आगे , दीपक जलाया । 

- अंकिता 
 १४ फ़रवरी, २०११

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