Wednesday, March 16, 2011

मंच




मैं देखती हूँ, दूर से
वो बहुत उंचा है
मैं सुनती हूँ वक्ता को
अपनी बात कहते हुए

भीड़ है , मंच के आगे
मंचासीन खुश है , सोचकर
काफी है मेरे चाहने वाले
लेकिन कोई भी किसी को
सुनना नहीं चाहता

वो भीड़ लगी है उनकी
जिनकी तमन्ना है
मंच पर चढ़
अपनी बात रखने की
क्योकि मंच अकेला नहीं
अपने साथ कुर्सियों को
समेटे खड़ा है
मैं अंतिम पंक्ति में खड़ी
उनकी बात, समझने की
कोशिश कर रही हूँ


-अंकिता

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