पहली कक्षा में कहा था गुरूजी ने
" समय की रफ़्तार को पकड़ना
समय के संग चलना हो तो घड़ी को साथ रखना "
उस दिन से आज तक मैं कभी तन्हा ना रही
कोई संग हो या ना हो, ऐ घड़ी! तुम हमेशा साथ रही
मैं हमेशा सोचती थी
तुम्हारे चलने से होता है सूर्य अस्त , सूर्य उदित
तुमसे कदमताल मिलाता
चाँद घटता , कभी खुद को बढ़ाता
तुम गुडाकेश हो
दीवारों का अलंकरण हो
दिन की सखी रात की संगिनी हो
फिर एक दिन यूँ ही लटके हुए
तुम चल बसी
और फिर !
फिर कुछ नहीं
वही सूर्यास्त वही सूर्य उदित
वही चाँद वही हर ऋतु में बदलता तापमान
और तो और
मेरी दिनचर्या भी वही की वही
जो नहीं है वो , मष्तिष्क पर छाई
तुम्हारी टिक टिक की परछाई !
गुडाकेश = नींद को जितने वाला
२५ अक्टूबर २०११