वो संजोये हुए है मेरी यादों को
कुछ नई हैं , कुछ ज़रा पुरानी हो गई हैं
छूते ही हर याद मानो कर रही है अपनी उम्र बयां
इन पन्नो पर इनका छपना कुछ वैसा ही है
जैसे खूबसूरत पलों को कैद करने की चाहत उभरती है आँखों में
आजकल तो यादें कम्प्यूटर की स्क्रीन पर चला करती हैं
कल गलती से मेरी कुछ यादें डिलीट हो गई
जैसे परिन्दें उड़ जाते हैं मौका पाकर !!
- अंकिता पाठक
४ अगस्त , २०११
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