अभी चंद मिनट पहले , हमने साथ में चाय पी थी
कप से उठते धुंए की तरह , तुम जाने कहा गुम हो गए
बाहर कहीं से बम धमाके की आवाज़ आई है !!
कूड़े कचरे की चुभन से , नदी के ज़ख्म गहरे हो गए
अपनी दशा पर रोते रोते , समुंदर में मिलकर कुछ शांत हुई
अब समझ आया की समुन्दर का पानी , इतना खारा क्यों है !!
तेरे क़दमों के निशाँ को मैं ,तुझसे मिलने का रास्ता समझ चलती रही
पर सारे निशाँ वृत्त की परिधि पर थे
मेरा दायरा सीमित करके , तुम जाने कहा बस गए !!
- अंकिता
१६ जुलाई , २०११
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