सलाखों के पीछे कैद
सज़ा है उम्रकैद
अपनी जंज़ीरों में खुद ही जकड़ता
सांस लेने की
सांस छोड़ने की
गुंज़ाइश को कम करता
हैं अपने सपने
मंज़िल की भी है खबर रखता
लेकिन
सफ़र से डरता
रास्ते को घूरता
कोल्हू के बैल सा
औरों के इशारों पर घूमता
जो चाहत नहीं है
उसे पाने के लिए दौड़ता
भीड़ में शामिल होकर
खुद को खोता
भीड़ में चलता
भीड़ में उठता
भीड़ में ही सोता
गुम होकर फिर
आसपास देखता
कौतुहल समेटता
हर पल डरता
पल पल मरता
कभी कभी वीर सा
साहस बटोरता
कदम बढाने के लिए
कदम उठाता
लेकिन सशंकित
मन में डर किये अंकित
कदम बढाता नहीं
दुबारा वही रखता
खुद के लिए, खुद ही
मेहनत खूब करता
अपने आसपास, अपने लिए
अदृश्य जाल बुनता
सबकुछ अपने लिए
खुद से चुनता
हर छोटे बदलाव से बचता
आज़ाद होने की है चाहत
लेकिन आजादी से डरता
-अंकिता
१७ सितम्बर २०११
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