खुश तो हूँ मैं , उद्घाटन है आज
बन जो गया है, नाना नानी का मकान
मन में है दुविधा है, हज़ारों हैं काम
अपनी धुन में मगन, बतिया रहे हैं मेहमान ।
सोचती हूँ
खाने के लिए, डिस्पोजेबल मटेरियल लाऊं ?
या टेंट हाउस से थाली कटोरी, चम्मच, मंगवाऊ ?
दुविधा है
क्योकि घर के पीछे है प्लास्टिक की थैलियों की रो
और नल में पानी का कम है फ्लो ।
नानाजी रोज़ पेपर पर लिखते हैं राम नाम
इसे मंदिर में जमा कराने का सौपा है मुझे काम
दुविधा है
इसे मंदिर में सहेज कर रख आऊं ?
या बांध कर कथा का प्रसाद, इसे सब में बँटवाऊ ?
घर में हैं चूहे, जो करते हैं परेशान
नानी ने की है , रैट किल की डिमांड
दुविधा है
क्योंकि मैं लाई, और मुझसे ही रखवाया ?
पूछा ऐसा क्यों , तो जीव हत्या को पाप बताया
ठीक है थोड़ी दुविधा के साथ
मैंने भी ये पाप अपने सर चढ़ाया
रैट किल मंदिर के नीचे रख
भगवान के आगे , दीपक जलाया ।
- अंकिता
१४ फ़रवरी, २०११
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