Monday, December 13, 2010

संघर्ष

एक चींटी समुन्दर की लहरों पे सवार थी ,वो बहती चली जा रही थी उसके हाथ में न पतवार थी
रास्ते में चट्टाने कहीं द्वीप कहीं टापू थे ,बाधाएं थी अनेक और वो सामना करने को तैयार थी
ना था उसे पत्ते का सहारा कोई ,ना किसी साथी के वो साथ थी , ना लहरों से कोई दोस्ती ना साहिल के वो पास थी
पर उसकी कोशिशें जारी थी की कहीं किनारा मिल जाए , पर उसकी कोशिशें जारी थी की धरती से वो मिल जाए
हालात के आगे हारना उसे नामंजूर था और बहाव के साथ बहना ही उसका नसीब था
ऐसे तूफ़ान में तो वो ऊँचा पेड़ भी गिर गया , उसकी जड़े भी हिल गई , वो लहरों संग बह चला
पेड़ के तने पर वो नन्ही जान सवार हुई ,उसके सहारे एक द्वीप पर पहुंची और तूफ़ान से पार हुई
वहां पर हरियारी थी ,फूलों की फूलवारी थी ,वो समुन्दर के बीच थी फिर भी लहरों से दूर थी
चींटी को साहिल नहीं मिला फिर लेकिन धरती का सहारा साथ था , नभ को वो छू न सकी पर क्षितिज उसके पास था

वक़्त

दरिया सा बहता ये वक़्त निकल जाता है , देखते ही देखते हाथों से वक़्त फिसल जाता है
सुबह सवेरे उठने का मन नहीं होता ,चादर सर से हटती नहीं और सूरज चढ़ जाता है
देखते ही देखते सुबह का वक़्त गुज़र जाता है

अलसभरी दोपहरी में फिर अलसाई नज़रें है , आँखों में फिर से नींद को ललचाई नज़रें है
इसे में तो ये दिन भी यु ही कट जाता है , सूरज अब भी सर पर हे और वक़्त गुज़र जाता है

कुछ दिन निकला कुछ शाम आई कुछ ठंडक अपने संग लाइ
कुछ न किया इस दिन में भी जाने फिर थकान क्यों आई
फिर मन ने मेरे मुझसे ये कहा , बस आज काम तो बहुत हुआ
देखा फिर की सूरज भी अपनी जगह से हट जाता है , शाम का ये वक़्त भी यु ही कट जाता है
लो सूरज डूब चूका ,अब चाँद निकल आया है , रात के अँधेरे में तारों का संसार नज़र आया है
अब तो फिर से सोने का वक़्त करीब आया है
यु ही रात निकल जाती है यु ही वक़्त गुज़र जाता है

इंसान

वो निर्झर सा निर्मल है , वो वर्षा सा शीतल है , वो अग्नि सा पवित्र है ,वो प्रेरणा का स्त्रोत है
वो भारत की शान है , भारतवासी की आवाज़ है , वो हमारा गर्व है, वही गर्व का आधार है
इस विश्व में शान्ति का वही सूत्रधार है ,देश की उन्नति का बन सकता रचनाकार है
हां वही हे ये जिसमे सरस्वती विद्यमान है , हाँ वही है ये जिसे अपनी मिटटी से प्यार है
वही है आज जो धरती को स्वर्ग बना सकता है और अगर कर जाए यह तो सम्मान का हकदार है
हाँ ये हे सामान्य जन विशिष्टता का कर्णधार है , हाँ यही हे वो जो हममे छुपा हुआ इंसान है

नफरत

चाहे तेरा घर जले, चाहे मेरा घर जले , आखिर में राख का ढेर ही लगता है
तेरी हो बेटी , या मेरा हो बेटा, मरने वाला कोई इंसान ही होता है
दिल तो कही ना कही तेरा भी रोता है, खुदा भी तुझसे यही कहता है
आदमी है आदमी से नफरत क्यों करता है

कोई हो मजहब , या कोई हो मुल्क , आखिर में हर कोई इश्वर से मिलता है
सूरज की तीखी किरणों के आगे , माथे में बल तो तेरे भी पड़ता है
तेरे दिल में छुपा इंसान भी तुझसे ,कभी ना कभी सवाल तो करता है
आदमी है , आदमी से नफरत क्यों करता है

चाहे दागे तू गोली या बम तू लगा दे , आखिर में तो किसी का खून ही बहता है
बिना रोटी के रगों में खून, ना तेरे दौड़ता है ना मेरे बहता है
तू भी तो कुछ कुछ मेरी तरह है, तो क्यों इंसानियत का दुश्मन बना फिरता है
हर दिन क्यों कत्लेआम करता है
आदमी है आदमी से नफरत क्यों करता है

घर की छत टूट गई

बस की ये दीवाली आई , सोचा मैंने की करवाऊ सफाई
पर जैसे ही शुरू की पुताई , देखा कि घर की छत टूट गई

मन होता है रसोईघर में संगमरमर लगवाऊ , दीवारें नए रंगों से सजाऊ
चुनने लगा मैं रंग , तो कीमतें आसमान छू गई
देखा की घर की छत टूट गई

मंदिर में बैठा लेने राम नाम , सोचा मिलेगी कुछ शांति
पर जेसे ही बिछाया आसन , मैने पाया की फर्श भी तड़क गई
देखा की घर की छत टूट गई

आज मन कर रहा हे लिखू कुछ , ली मैने हाथ में कॉपी
उठाई कलम , पर ये क्या स्याही तो खतम हो गई
देखा की घर की छत टूट गई

परेशानियां तो बनी रहती हे , पर बस अब गिनाउंगा नहीं ,
कोशिश करूंगा मुस्कुराने की , दर्द बांटकर बढ़ाऊंगा नहीं
तो क्या हुआ जो घर की छत टूट गई

इक कोशिश जरूरी है



भागती दौड़ती जिन्दगी में संवेदनाओं के लिए जगह कहा है
तेज़ रफ़्तार जिन्दगी में खुद के लिए समय कहा हे

साधन और साध्य में कुछ फ़र्क तो होता है
लक्ष्य और अरमान इक दूजे से जुदा होता हे
इन छोटे छोटे फर्क पर कुछ विचार जरूरी है
मन की आवाज़ सुनने के लिए कुछ तन्हा पल जरूरी है

हम खुद के बारे में दूसरों की राय जानना चाहते है
कुछ सलाह सुनकर खुद में सुधार लाना चाहते है
बस मन की कंदराओं में झाँकने की दरकार है
सारे जवाबों की लगी यहाँ कतार है

इक कोशिश खुद को खुद से मिलाने की जरूरी है