हाथ से वो टुकड़ा फिसला , सोचा खो गया
लेकिन वो तो दबा था, चाँद की परछाई में छिपा था |
सोचा सुबह आराम से ढूंढूंगी मिल जाएगा
पर नहीं मिला, अमावस की रात बड़ी लम्बी चली |
शायद वो परछाई का पर्दा टुकड़े पर नहीं आँखों पर पड़ा था,
क्योंकि ध्यान से देखा तो टुकड़ा अपनी जगह पर स्थिर खड़ा था |
वो टुकड़ा तो खुद में ही पूरा था,
जिसे चाँद समझा, वो तो सूरज था |
-अंकिता
लेकिन वो तो दबा था, चाँद की परछाई में छिपा था |
सोचा सुबह आराम से ढूंढूंगी मिल जाएगा
पर नहीं मिला, अमावस की रात बड़ी लम्बी चली |
शायद वो परछाई का पर्दा टुकड़े पर नहीं आँखों पर पड़ा था,
क्योंकि ध्यान से देखा तो टुकड़ा अपनी जगह पर स्थिर खड़ा था |
वो टुकड़ा तो खुद में ही पूरा था,
जिसे चाँद समझा, वो तो सूरज था |
-अंकिता
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