एक बड़ी सी जगह
उसमे छोटा सा घर
खुली सी छत
धूप से उजला आँगन |
एक छोटा कच्चा कमरा
पेड़ की झुरमुठ में घिरा
जिसकी दीवारों को हाथ से लीपू ,
तुम्हारे संग सजाऊँ, कुछ चित्र उकेरूँ |
और उस कच्चे कमरे में होगा कुम्हार का चाक,
कोने में एक सुराही |
कुछ खुले से रंग
कुछ बिखरी किताबे |
उसकी खिड़की के पास होगी एक छोटी सी टेबल
उसपे रखे कुछ खाली पन्ने ,
जिनपर यथार्थ और कल्पनाओ से टकराते हुए
कुछ शब्द सिमट जाएंगे, और कुछ टेबल पर बिखर जांएगे |
आँगन में रंगोली डाल ,
सबसे ऊँचे पेड़ पे बांधूंगी झूला |
कभी चिड़िया बनाते बनाते जब वो हाथी में ढल जाएगी
तब बाहर लगे नल से मिट्टी में सने हाथ धो लूंगी |
फिर शाम को सुकून से तुम्हारे संग बैठ
चाय की प्याली में गपशप उढ़ेलूँगी |
-अंकिता
१५ जून , २०२०
उसमे छोटा सा घर
खुली सी छत
धूप से उजला आँगन |
एक छोटा कच्चा कमरा
पेड़ की झुरमुठ में घिरा
जिसकी दीवारों को हाथ से लीपू ,
तुम्हारे संग सजाऊँ, कुछ चित्र उकेरूँ |
और उस कच्चे कमरे में होगा कुम्हार का चाक,
कोने में एक सुराही |
कुछ खुले से रंग
कुछ बिखरी किताबे |
उसकी खिड़की के पास होगी एक छोटी सी टेबल
उसपे रखे कुछ खाली पन्ने ,
जिनपर यथार्थ और कल्पनाओ से टकराते हुए
कुछ शब्द सिमट जाएंगे, और कुछ टेबल पर बिखर जांएगे |
आँगन में रंगोली डाल ,
सबसे ऊँचे पेड़ पे बांधूंगी झूला |
कभी चिड़िया बनाते बनाते जब वो हाथी में ढल जाएगी
तब बाहर लगे नल से मिट्टी में सने हाथ धो लूंगी |
फिर शाम को सुकून से तुम्हारे संग बैठ
चाय की प्याली में गपशप उढ़ेलूँगी |
-अंकिता
१५ जून , २०२०