जबसे आँखें खोली हैं, मैं दौड़ रहा हूँ ।
हर ओर देखता हूँ, लोगो का हुजूम ।
सब अपने-अपने गुट में, मेरी ओर आ रहे हैं
मुझे पाने के लिए, दौड़ लगा रहे हैं।
अजीब हैं ये लोग, सब एक से दिखाई देते हैं
एक गुट लिए है पंख, दूसरा पिंज़रा-ताला थामे है
जब भी मुझे पाते हैं , मुझपर भार बढ़ाते
अपने-अपने हथियारों से, मुझको हैं सजाते
मेरे मन में है सवाल, मैं इनसे पूछना चाहता हूँ
मुझपर इतना भार बढ़ाओगे,
तो तुम कैसे दौड़ पाओगे?
- अंकिता
१६ फरवरी, २०१५
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