सब रीति रिवाज़ बनाए मैंने
और बदले पल पल
हर पल जैसी थी सहूलियत
फिर इसमें शामिल किए कुछ अंधविश्वास
थोड़ी ली कट्टरता, और थोड़ा भेदभाव
थोडा झूठ, थोड़ी इर्ष्या
कुछ नहीं था कुछ भी
जो भी था, वो था मेरा डर
एक दिन किसी ने कहा
इस पेड़ को काट दो
जड़ से इसे मिटा दो
है इसमें वास्तु दोष
(मेरे डर का नया नामकरण)
घर के सामने इसका होना
है वंश वृद्धि में अवरोधक
जान तो थी उस पेड़ में
लेकिन था बेजुबान
उसे काट फेका कुल्हाड़ी से
बड़ा मज़बूत था उसका हत्था
लकड़ी का जो बना था
फिर एक दिन किसी ने
घर में लड़की का होना भी समझा वैसा ही ,
जैसा घर के बाहर होना उस पेड़ का
और लड़की के साथ भी हुआ वही
जो मैंने किया था पेड़ के साथ
-अंकिता
१३ जून , २०१२
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