मन का सघन वन
विचारों की किरण गतिवान प्रतिपल
कभी घनत्व को चीरकर
कभी घनत्व को चीरकर
टकराती पत्थरों से
कभी गहराई से खोज लाती
बहुमूल्य रत्न
मस्तिष्क की संकरी गलियों से
गुजरकर पगडंडियों से
सुझाती जाती कभी कठिन लक्ष्य का
सरलतम हल
पड़ती सुनसान मार्ग पर
छूती अँधेरे कोनों को
एकांत क्षणों में कर जाती झंकृत
मौन संवेदनाओं के तार
मन का सघन वन
विश्राम के पलों में भी
विश्राम के पलों में भी
गतिशील निरंतर
बनकर स्वप्न
-अंकिता
-अंकिता